रायगड किला छत्रपती शिवाजी महाराज का गौरवशाली सिंहासन | Raigad Fort Capital of the Maratha Empire

रायगड किला – छत्रपती शिवाजी महाराज का गौरवशाली सिंहासन
Raigad Fort Capital of the Maratha Empire

रायगड किला – छत्रपती शिवाजी महाराज का गौरवशाली सिंहासन

महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में स्थित रायगड किला न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि मराठा साम्राज्य की शान और गौरव का प्रतीक भी है। यह वही पवित्र स्थल है जहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था और मराठा साम्राज्य की नींव पड़ी थी। रायगड न केवल एक किला है, बल्कि यह उस स्वराज्य का प्रतीक है जो अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़ा हुआ।


इतिहास की गहराई में – रायगड की उत्पत्ति

रायगड किले का इतिहास लगभग 11वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। इसे पहले “रायर्यन दुर्ग” या “रैरि किला” के नाम से जाना जाता था। इस किले का निर्माण शिल्हार वंश के राजाओं द्वारा किया गया था। कई वर्षों तक यह किला अलग-अलग राजाओं और बादशाहों के अधीन रहा, लेकिन 1656 ईस्वी में जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस किले को बीजापुर के आदिलशाही सुल्तान से अपने अधीन किया, तब इस किले की किस्मत ही बदल गई।


शिवाजी महाराज ने इस किले को अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया और उसका नाम बदलकर “रायगड” रखा, जिसका अर्थ होता है "राजाओं का किला"। यही वह स्थान बना जहाँ से स्वराज्य की घोषणा हुई और मराठा साम्राज्य की नींव रखी गई।


शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक – स्वराज की पवित्र शुरुआत

6 जून 1674 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। इसी दिन रायगड किले पर छत्रपति शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक हुआ था। यह केवल एक राजा के राज्यारोहण का क्षण नहीं था, बल्कि यह भारतीय स्वाभिमान और स्वतंत्रता की आवाज़ थी।


समुद्र तल से लगभग 2700 फीट की ऊंचाई पर स्थित रायगड किले पर उस दिन हजारों लोग इकट्ठा हुए थे। भारत के कोने-कोने से ब्राह्मण, विद्वान, संत, और राजन्य आए थे। गंगाजल से स्नान कराकर शिवाजी महाराज को “छत्रपति” की उपाधि दी गई थी। उनका राज्याभिषेक दो बार हुआ – एक वैदिक रीति से और दूसरा काशी के गागा भट्ट द्वारा।


इस राज्याभिषेक ने भारत में मुगलों के खिलाफ एक वैकल्पिक शासन व्यवस्था की नींव रखी।


रायगड किले की वास्तुकला और संरचना

रायगड किला एक वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। यह किला सह्याद्री पर्वत पर अत्यंत दुर्गम और रणनीतिक दृष्टिकोण से बनाया गया है। इसकी दीवारें, बुर्ज, दरवाज़े और महल इतने मज़बूत हैं कि आज भी इतिहास की गूंज सुनाई देती है।


मुख्य आकर्षण:

1. महादरवाजा (मुख्य द्वार): यह विशाल द्वार पहाड़ की घाटी से प्रवेश करते समय दिखता है। यह द्वार दो विशाल मीनारों से सुसज्जित है जो राजशाही प्रभाव को दर्शाता है।


2. राजमहल: यह शिवाजी महाराज का निवास स्थान था। अब यहाँ केवल अवशेष शेष हैं, परंतु एक समय यह शाही वैभव से भरा हुआ था।


3. रानी वासा (रानियों की हवेली): महाराज की रानियों के लिए बनवाया गया विशेष आवास।


4. नागारखाना दरवाजा: शाही सभा में प्रवेश करने का मुख्य मार्ग। इसके ऊपर ढोल-नगाड़ों का वादन होता था।


5. राजसभा मंडप: यही वह स्थान है जहाँ शिवाजी महाराज दरबार लगाते थे। आज भी वहाँ उनका सिंहासन (पत्थर का) स्थित है, जिसके सामने जनता बैठती थी।


6. हातीरखाना: हाथियों को रखने के लिए बनाया गया एक बड़ा परिसर।


7. समाधि स्थल: रायगड किले के दक्षिण में, शिवाजी महाराज की समाधि स्थित है। उनके प्रिय वफादार कुत्ते वाघ्या की भी समाधि उनके पास ही है।


रणनीतिक महत्त्व

रायगड किला समुद्र तल से 2700 फीट ऊंचा है और चारों ओर से खड़ी चट्टानों से घिरा हुआ है। इसकी यह संरचना इसे लगभग अभेद्य बनाती है। मराठा सेना ने इस किले से कई युद्धों की योजना बनाई और आक्रमणों को विफल किया।


किले के चारों ओर गहरी खाइयाँ हैं, जो शत्रु के लिए एक बड़ा संकट थीं। साथ ही, ऊपर तक पहुँचने के लिए केवल कुछ ही मार्ग हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध है “हिरकणी बुरुज”।



हिरकणी बुरुज की प्रेरणादायक कथा



हिरकणी एक दूधवाली थी जो किले के अंदर दूध बेचने आती थी। एक दिन किले का द्वार बंद हो गया और वह किले के भीतर ही फँस गई। उसका छोटा बच्चा नीचे गाँव में था, जिसकी चिंता में उसने अंधेरी रात में खड़ी चट्टानों से उतरकर अपने बच्चे तक पहुँचने का साहस किया।


जब शिवाजी महाराज को इस बात का पता चला, तो उन्होंने उसकी बहादुरी की सराहना की और उसी स्थान पर एक बुर्ज (गुंबद) बनवाया, जिसे आज “हिरकणी बुरुज” कहा जाता है।


शिवाजी महाराज की अंतिम सांस और उत्तराधिकारी

1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने रायगड किले में ही अपनी अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र संभाजी राजे रायगड पर राजगद्दी पर बैठे, लेकिन मुगलों के हमलों के कारण रायगड को छोड़ना पड़ा।


औरंगजेब के शासनकाल में रायगड पर आक्रमण हुआ और उसे कुछ समय के लिए मुगलों के अधीन कर लिया गया। परंतु, इस किले की आत्मा मराठाओं में ही बसती थी।


पर्यटन स्थल के रूप में रायगड

आज रायगड किला एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। इतिहास प्रेमियों, प्रकृति प्रेमियों, ट्रेकिंग के शौकीनों और मराठा संस्कृति को जानने वालों के लिए यह किला एक तीर्थ के समान है।


यहाँ हर साल लाखों लोग छत्रपति शिवाजी महाराज को श्रद्धांजलि देने आते हैं, खासकर 6 जून को राज्याभिषेक दिवस के अवसर पर भव्य आयोजन होता है।


आकर्षण:


ट्रेकिंग के रोमांच


रोपवे सुविधा


ध्वनी प्रदर्शन 


छत्रपती शिवाजी महाराज की प्रतिमा


कैसे पहुँचे रायगड किले तक?

रायगड महाराष्ट्र के रायगड जिले में स्थित है। यह पुणे से लगभग 140 किलोमीटर और मुंबई से 170 किलोमीटर दूर है।


रेलवे स्टेशन: वीर या महाड

बस सेवा: महाराष्ट्र राज्य परिवहन की बसें उपलब्ध हैं,

रोपवे: गढ़ चढ़ने के लिए रोपवे सुविधा उपलब्ध है जिससे मात्र 10 मिनट में आप ऊपर पहुँच सकते हैं.



रायगड किला – एक प्रेरणा


रायगड केवल एक किला नहीं है – यह साहस, स्वराज्य, नेतृत्व और आत्मगौरव की जीवंत मिसाल है। यह उस योद्धा राजा की कर्मभूमि है जिसने भारतीय इतिहास को एक नई दिशा दी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने दिखाया कि जनता के हित में काम करने वाला राजा कैसे होता है।


आज भी जब हम रायगड की ऊँचाइयों से नीचे घाटियों को निहारते हैं, तो मन में गर्व भर आता है कि हम उस मिट्टी से हैं जिसने शिवाजी जैसे वीर पुरुष को जन्म दिया।


निष्कर्ष

रायगड किला केवल ईंट और पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि वह चेतना है जो हमें अपने इतिहास, संस्कृति और आत्मसम्मान से जोड़ती है। यदि आपने अब तक रायगड की यात्रा नहीं की है, तो एक बार अवश्य जाएँ और उस पवित्र भूमि को प्रणाम करें जहाँ भारत का पहला हिंदवी स्वराज्य स्थापित हुआ।

Previous Post Next Post